आष्टा। आत्म शुद्धि के महापर्व पर्युषण और दस लक्षण व्रतों में जैन मंदिरों में अभूतपूर्व धर्म प्रभावना हो रही है । वर्षायोग में चातुर्मास के लिए विराजित मुनिश्री भूतबली सागरजी महाराज के ससंघ सानिध्य और सदुपदेश से श्रावक गण जहां तप , उपवास , नित्य पूजा पाठ और रागादि कषायों का त्याग कर रहे हैं वहीं धार्मिक संगठनों द्वारा शास्त्रोक्त सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी उत्साह पूर्वक किया जा रहा है ।
जैन समाज की आचार्य विद्या सागर पाठशाला के नन्हे मुन्ने शिक्षार्थियों द्वारा जैन संविधान कहे जाने वाले मोक्ष शास्त्र के अंतर्गत तत्वार्थ सूत्र का सस्कृत भाषा मे स्पष्ट और निर्दोष वाचन भी श्रावकों के लिए प्रेरक बन रहा है । आज कु. स्वस्ति विजय जैन तथा कु.वर्धिका मनोज जैन ने सभी अध्यायों का शुद्ध उच्चारण पाठ करके सभी को हतप्रभ कर दिया । तत्वार्थ सूत्र पर ब्रह्म चारिणी मंजुला दीदी द्वारा रात्रिकाल में सटीक प्रवचन भी नियमित रूप से चल रहे हैं ।
दस लक्षण पर्व में गुरुवार को उत्तम तप दिवस था । इस अवसर पर पूज्य मुनि श्री भूतबली सागर जी महाराज ने अपने प्रवचनों में तप के महात्म्य और विनम्रता को रेखांकित करते हुए कहा कि हाथ जोड़ोगे तो सब जुड़ जायेगें ।
चार प्रकार के आहार का क्रमिक त्याग और रस त्याग करके हम स्वाद लोलुपता से बचेंगे तो उत्कृष्ट तप धारण कर सकेंगे । मुनि श्री ने कहा कि क्षुधा और काम पर विजय पा कर ही आत्म कल्याण किया जा सकता है ।
एक जगह बैठकर , निर्विकल्प हो कर आराधना करना और
आत्मस्थ रहना ही ध्यान है हम बड़े नही है हम तो छोटे हैं यही भाव सदैव रहना चाहिए।
नम्रता के साथ सब को बड़ा और स्वयं को छोटा समझो
द्वेष भाव छोड़कर सब से नम्रतापूर्वक बोलो।
परिवार में , मित्रता में , समाज में, नगर- नगर में , डगर- डगर में घर -घर मे नम्रता होना जरूरी है ।
वृद्ध लोगों के पास नम्रता का अनुभव होता है यही तप धर्म की आराधना है तप के माध्यम से ही मोक्ष की प्राप्ति होगी ।
मुनि श्री ने तप की महत्ता के साथ ही आज सुगन्ध दशमी के अवसर पर इस दिवस को कर्मो की निर्जरा के संकल्प दिवस के रूप में मनाने का भी संदेश दिया । सभी जैन मंदिरों में पहुंच कर आज जैन श्रावक – श्राविकाओं ने दर्शन लाभ के साथ ही सुगन्धित धूप अर्पित करके अपने अशुभ कर्मों के नष्ट होने की कामना की ।
नगर के किला स्थित दिव्योदय तीर्थ के साथ ही अलीपुर स्थित चन्द्र प्रभ जिन मंदिर और गंज के मंदिर में भी श्रावक श्राविकाएं शामिल होकर पूजा पाठ , शास्त्रार्थ और जप तप का लाभ ले रहे हैं ।