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आष्टा।पर्यावरण प्रेमी संघ के प्रेरक एडवोकेट धीरज धारवॉ ने किसान भाईयों से अपील की है कि वे वर्षों से सोयाबीन की फसलों का दुष्परिणाम देख रहें है। जिसके परिणाम में खेतों मे उर्वरक शक्ति, चारामार और इल्लीमार दवाओं के लगातार उपयोग छिड़काव से खत्म जैसी हो गई है। फसल चक्र का पालन नहीं हो रहा है।

एडवोकेट धीरज धारवा,पर्यावरण प्रेमी आष्टा

धारवा ने किसान भाईयों से आग्रह किया है कि किसान भाई इस वर्ष अपने खेतों में ज्वार, मक्का, उड़द, तिल्ली, तुवर आदि की फसल बोंवे। चूंकि रबी की चना गेंहूं की फसल भी बोना जरुरी होता है इसलिए 60-65 दिन की अवधि की शंकर ज्वार और हाईब्रीड मक्का बोई जा सकती है। तुवर उड़द आदि के भी अब कम बीज मिल रहें है। इसलिए यदि इन फसलों को बोया जावे तो खेतों में से सोयाबीन वाली ईल्लीयॉ और उनके अण्डे नष्ट हो जावेंगे और जमीन की उर्वरक शक्ति पूर्ववत कायम रहेगी।

मक्का की बुवाई पर किसान करे विचार

इस प्रकार कम अवधि वाली ज्वार मक्का आदि की फसलों के बाद गेंहूं चने की फसल आसानी से बोई जा सकती है। धीरज धारवॉ ने किसान भाईयों से इस तथ्य पर विचार करने का आग्रह किया है कि एक एकड़ कृषि भूमि में केवल 3 किलो ज्वार अथवा 10 किलो मक्का का बीज बोनी हेतु पर्याप्त होता है। इसके मुकाबले सोयाबीन 30.40 किलो प्रति एकड़ बोना पड़ता है। इसकी कीमत और फिर इल्ली मार दवा तथा चारा मार की कीमत और बाद में कटवाई थ्रेसर से निकलवाई की लागत को ज्वार मक्का आदि की लागत से तुलना की जाए तो निश्चित ही अब सोयाबीन की बुवाई कोई मायने नही रखती है।

ज्वार की बुवाई पर किसान करे विचार

इस बात पर भी किसान भाई विचार करे कि गेहूं चने की फसल की कटवाई की मजदूरी और बाद में थ्रेसर से निकलवाना काफी खर्चीला हो जाने से अधिकांश लोग हार्वेस्टर से फसल कटवाते है जिस के परिणाम में वे पशुओं के लिए भूसा से वंचित हो जाते है। लेकिन यदि खरीफ की फसल मे ज्वार मक्का बोई जावे तो कड़ब,चारा के रुप में इतना पशुचारा मिल जाता है कि जिससे 12 महिनों न केवल अपने मवेशी बल्कि आवारा तथा गौशाला के मवेशियों का भी पेट.पालन हो सकता है। उन्होने किसानों से यह भी अपील की है कि यह मिथ्या भ्रम है कि ज्वार बोने से पक्षी नुकसान पहुंचाते है जबकि ज्वार के भुट्टे की बाहरी हिस्से का 5 प्रतिशत हिस्सा ही पक्षी खा पाते है। और जिन किसानों ने पक्षीयों को खिलाने से न रोकने का मनसुबा बनाकर यदि ज्वार बोई तो उनके खेत में ज्वार की फसल पक्षी भगाने वाले किसानों के खेत में बोई फसल से ज्यादा होगी। इस बात की पुष्टि आलोक दालमिल कन्नौद रोड़ आष्टा के मालिक शेखर सेठ बोहरा तथा उनके भाई श्री देशचंद बोहरा टोंडू सेठ से मिलकर की जा सकती है। जो अपनी 4 बीघा भूमि में पक्षीयों के लिए ज्वार बोते है और उसके बाद भी उनके खेत में लगभग 45 क्विंटल ज्वार का उत्पादन होता है।

अब सोयाबीन का पीछा छोड़े किसान..!

धारवॉ ने किसानों से निवेदन किया कि अभी तक हमने सोयाबीन के नाम पर करोड़ों इल्लीयों और किटाणुओं की हत्या की है उसके बदले में यदि एक साल सभी किसान भाई अपनी.अपनी कृषि भूमि में या भूमि के कुछ हिस्सों में पक्षीयों के नाम पर ज्वार मक्का आदि बोवेंगे तो प्रकृति और पक्षीयों की दुवाऐं उनके साथ रहेगी और परिणाम में उन्हे खूब लाभ होगा। विगत् वर्ष से प्रकृति की मार झेल रहे ऐसे किसान भाईयों की संख्या ज्यादा है। जिनके पास बोने के लिए सोयाबीन का बीज नहीं है ऐसे किसान भाई एक बार उनकी इस अपील पर ध्यान देकर यदि ज्वार मक्का इस साल बोकर देख ले तो निश्चित ही प्रकृति उन्हे निहाल और मालामाल कर देगी।
जय जवान-जय किसान

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