सीहोर। छोटे-भाई बहनों की देखभाल और परिवार की आर्थिक तंगी के चलते जिस “आशा” ने सात साल पहले अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी, आज वही आशा पूरे परिवार का सहारा,आशा की किरण और भविष्य की आशा बन गई है। पढ़ाई छोड़ चुकी आशा को पुनः पढ़ाई शुरू करने के लिये निरन्तर प्रोत्साहित करने और उसके माता-पिता को इसके लिये सहमत कराने की कोशिश रंगलाई। इस छोटी सी कोशिश ने आशा के जीवन की तस्वीर बदल दी।
वर्ष 2013 में छटी क्लास से पढ़ाई छोड़ने के बाद आशा के मन में यह कशक तो थी कि, वो भी आगे औरों की तरह पढ़ाई करती। लेकिन अपने नाम के अर्थ को सार्थक करते हुए एक बार फिर सरकारी स्कूल में कक्षा आठवीं में दाखिला लिया। आशा ने पूरी लगन के साथ परिश्रम किया और आगे बढ़ते हुए 12 वीं के बाद भोपाल से लैब टैक्निशियन का डिप्लोमा किया। आशा आज भोपाल के एक निजी अस्पताल में लैब टैक्निशियन है। माता श्रीमती ममता और पिता श्री मनोहर बरखाने अपनी बेटी आशा की कामयाबी पर गर्व करते है।
दरअसल नसरुल्लागंज तहसील के ग्राम सुकरवास निवासी आशा बरखाने के संघर्ष की कहानी तब शुरू हुई जब वह छटी क्लास में थी। पारिवारिक समस्याओं के चलते उसकी पढ़ाई छूटी, स्कूल जाना बंद हो गया। आशा अपने छोटे भाई बहनों की देखभाल और घर के काम करती। माता-पिता के दिहाड़ी मजदूरी के लिये जाने के बाद आशा हर रोज नियमित समय पर छोटे भाई बहनों को लेकर गांव की आंगनबाड़ी जाती और वापस साथ लेकर घर आ जाती। आंगनबाड़ी में मध्यान्ह भोजन मिल जाता और छोटे भाई बहन पढ़ाई करते।
आंगनबाड़ी में छोटे भाई बहनों और अन्य बच्चों को पढ़ता देख आशा के में मन में पढ़ने की इच्छा तो होती लेकिन वो बेबस थी। आशा का छोटे भाई बहनों को लेकर आंगनबाड़ी आने-जाने का सिलसिला नियमित चलता रहा। उसी साल 2014 में महिला एवं बाल विकास विभाग के शौर्य दल को जब यह पता चला कि आंगनबाड़ी आने-जाने वाली आशा ने गत वर्ष छटी से पढ़ाई छोड़ दी है। आशा की पढ़ने की ललक को देखते हुए शौर्य दल की महिलाओं ने उसे फिर से पढ़ाई शुरू करने के लिये प्रेरित करने के साथ ही उसके घर जाकर माता-पिता को पढ़ाई का महत्व बताया। आशा को फिर से पढ़ाने के लिये राजी कर लिया।
आशा की योग्यता को देखते हुए कक्षा सातवीं से प्रमोट कराकर नसरूल्लागंज कन्या शाला में कक्षा आठवीं में दाखिला करा दिया। यहां से 12 वी उत्तीर्ण करने के बाद आशा ने भोपाल से 2020 में लैब टैक्निशियन का कोर्स किया। परिवार की आशा,”आशा” अब भोपाल के एक निजी अस्पताल में लैब टैक्निशिन है। जिला कार्यक्रम अधिकारी प्रफुल्ल खत्री ने बताया कि महिला एवं बाल विकास विभाग की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हेमा कहार और पर्यवेक्षक शाजिया परवीन की कोशिश ने “आशा” के जीवन की तस्वीर बदल दी। आज परिवार की “आशा” परिवार के लिये “आशा” की एक किरण बन गई है