आष्टा। अभी तक तो सुना था,की घुंघरू बजते है,लेकिन,आज ज्ञात हुआ की ये घुंघरू जो बजते नही है, की तर्ज पर कोविड की जान बचाने वाले रेमडेसिविर इंजेक्शन लोगो की जान ही नही बचाते है,ये खनकते भी है,खनकते भी ऐसे की ये एक बार कही खनकना शुरू हो जाये तो ये एक बार मे ही चुप नही होते, एक हजार,दस हजार बार मे भी चुप नही होते ये रेमडेसिविर इंजेक्शन अगर बजना शुरू हो जाये तो ये पूरे 5 लाख बार बजने के बाद ही चुप होते है। जिसकी जान इस इंजेक्शन में फसी होती है ठीक वैसे ही, जैसे किसी के प्राण तोते में बसते है,ऐसा सुनते आ रहे है। गम्भीर कोविड के मरीजो को एवं उसके परिवार के सदस्यों को अपने कोविड संक्रमित मरीज के प्राण अगर कही नजर आते है तो वो रेमडेसिविर तोते में ही नजर आते है। देव गुरु ओर धर्म की इस तपोभूमि में क्या मानवता इतनी गिर गई है,क्या इंसानियत नाम की चीज खत्म हो गई है जो आज प्राण देने वाले रेमडेसिविर इंजेक्शन को प्राण देने के नाम पर एक बार नही,हजार बार नही पांच पांच लाख बार खनकना पड़ता है,वो भी ऐसे खनकना जिसकी आवाज किसी को ना सुनाई दे।
आज इस प्राण देने वाले इंजेक्शन के नाम पर जो कालाबाजारी कर मन का धन कर रहे है,जो कालाबाज़ारी में भी कलाकारी कर उसमे भी कालाबाज़ारी कर खुश हो रहे है,जो माध्यम बन कर थूका हुआ थूक चाट कर खुश हो रहे है वे केवल अपने देव,गुरु और धर्म के सामने बैठ कर 5 लाख बार नही केबल दिल से,मन से आत्मा के दरबाजे खोल कर 5 मिनिट चिंतन कर ले,मनन कल ले और दिल के तारो को खनका कर दिल से, पूछ लें की क्या एक गरीब,पीड़ित,शोषित को प्राण देने वाले इस मामले में जो कालाबाज़ारी की है,उसकी आड़ में जो पैसा पाया,वो पैसा जिसे हम हाथ का मेल कहते है उस दुखी मन से पाया पैसा, क्या वो आत्मा को मंजूर है..अगर आत्मा को परमात्मा मानते हो तो कोविड के उन मरीजो को लगने वाले इस प्राण रूपी इंजेक्शन के नाम पर वो सब कुछ मत करो जो कर रहे हो..! एक बात ध्यान रखना दूसरे की मजबूरी के बदले मजबूरी में फायदा खोजने वालो ये मत भूलो की आज वो दुखी है,वो पीड़ित है, भगवान ना करे, पर हो सकता है, जिस दौर से आज वो गुजर रहा है,अगर वो ही दुख,वो ही पीड़ा ने कभी अपना घर देख लिया तो क्या होगा.? इस लिये इंजेक्शन की खनक मत खनकने मत दो,जरा उन दानदाताओं, समाज सेवको,संगठनों से कुछ सीखो जिन्होंने महामारी के इस संकट काल मे ना जात देखी,ना धर्म देखा, ना वर्ग देखा देखी और निभाई तो केवल इंसानियत.!
जो ये सोच रहे है,समझ रहे है की रेमदेसिविर की खनन किसी को सुनाई नही दे रही होगी,दिल से दिल की बात को सुनने के लिये क्या किसी यंत्र की आवश्यकता होती है,नही दिल से दिल की बात को तो केवल महसूस किया जाता है,बस समझ लो खनक की आवाज तो फेल चुकी है,भले ही सुन कर सुनने वाला अनजान अनभिज्ञ बनता फिरे..! कालाबाजारियों एक बार जरूर चिंतन,मनन करना ऊपर वाले की लाठी में भी हमारे घुंघरू की तरह आवाज नही होती है……लेकिन वो लाठी भी हमारे घुंघरू की तरह होती है जो बजते तो नही पर सुनाई देते है। क्योकि बिना गलती के 5 लाख बार जबरन घुंघरू जो बज गये है…गलती वाले के घुंघरू बजते तो घुंघरुओं को दुख नही होता,पर क्या करे घुंघरू को बांधने वाली डोर को सजा मिल गई डोर का दोष इतना था की उसने घुंघरुओं को बांधा था..!