आष्टा। नगर सहित पूरे अंचल में रविवार को महिलाओं ने बड़े उत्साह,श्रध्दा,भक्ति के साथ शीतला सप्तमी का त्योहार मनाया। घरों को शुद्ध और पवित्र करते हुए शनिवार की रात को तैयार किये गए ठंडे खाने का भोग लेकर महिलाएं रात 12 बजे से प्रातः काल तक शीतला माता मंदिर पहुची ओर सीतला माता की विधि विधान से पूजन कर ठंडे भोजन,पकवान,का भोग लगाया,शीतल जल चढ़ाया।
नगर के शीतला माता मंदिर पर सुरक्षा को लेकर प्रशासन ने खासे इंतज़ाम भी किये गए, माता की पूजा अर्चना को लेकर महिलाओं में काफी उल्लास देखा गया। कोविड19 का पालन कर महिलाओं ने शीतला माता की विधिवत पूजन की तथा भोग लगाने के बाद घरों पर हल्दी के छापे लगाए गए।
ज्योतिषाचार्य पं. डॉ दीपेश पाठक ने बताया कि शीतला माता की कृपा हमारे पूरे परिवार पर बनी रहे इसलिये आज महिलाओं द्वारा शीतला सप्तमी का उपवास किया जाता है और इस दिन माता की पूजा की जाती है। इस उपवास की खास बात यह है कि इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलता और माता के प्रसाद सहित परिवार के समस्त जनों के लिये भोजन पहले दिन ही बनाया जाता है यानि सभी सदस्यों द्वारा आज बासी भोजन ग्रहण किया जाता है।
“इसी कारण इसे बसौड़ा, बसौरा आदि भी कहा जाता है”
नगरपुरोहित पण्डित पं मनीष पाठक के अनुसार शितलासप्तमी और माँ शीतला की महत्ता का उल्लेख हिन्दू ग्रन्थ “स्कन्द पुराण” में बताया गया है। यह दिन देवी शीतला को समर्पित है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार, शीतला माता चेचक, खसरा आदि की देवी के रूप में पूजी जाती है। इन्हें शक्ति के दो स्वरुप, देवी दुर्गा और देवी पार्वती के अवतार के रूप में जाना जाता है।कुछ लोग शीलताष्टमी भी मानते है।
माना जाता है कि शीतला माता भगवती दुर्गा का ही रूप हैं। चैत्र महीने में जब गर्मी प्रारंभ हो जाती है, तो शरीर में अनेक प्रकार के पित्त विकार भी होने लगते हैं। शीतलाष्टमी का व्रत करने से व्यक्ति के पीत ज्वर, फोड़े, आंखों के सारे रोग, चिकनपॉक्स के निशान व शीतला जनित सारे दोष ठीक हो जाते हैं। इस दिन सुबह स्नान करके शीतला देवी की पूजा की जाती है।
इसके बाद एक दिन पहले तैयार किए गए बासी खाने का भोग लगाया जाता है। यह दिन महिलाओं के विश्राम का भी दिन है, क्योंकि इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता। इस व्रत को रखने से शीतला देवी खुश होती हैं। इस दिन के बाद से बासी खाना नहीं खाया जाता। यह ऋतु का अंतिम दिन है जब बासी खाना खा सकते हैं।
“जानिए क्यों खाते हैं ठण्डा भोजन, शीतला सप्तमी के दिन”
शीतला सप्तमी से जुड़े कई लोक गीत है। उसी में से एक है “सीली सीतला ओ मांय, सरवर पूजती घर आय, ठंडा भुजिया चढ़ाय, सरवर पूजती घर आय”
इसी प्रकार सभी व्यंजनों के नाम लिए जाते जो माता रानी की भोग के लिए बनाये जाते है।
इस दिन ठंडा भोजन खाए जाने का रिवाज है इसका धार्मिक कारण तो यह है कि शीतला मतलब जिन्हे ठंडा अतिप्रिय है। इसीलिए शीतला देवी को प्रसन्न करने के लिए उन्हें ठंडी चीजों का भोग लगाया जाता है।
दरअसल शीतला माता के रूप में पंथवारी माता को पूजा जाता है। पथवारी यानी रास्ते के पत्थर को देवी मानकर उसकी पूजा करना। उनकी पूजा से तात्पर्य यह है- कि रास्ता जिससे हम कही भी जाते हैँ, उसकी देवी ।
वह देवी हमेशा रास्ते में हमें सुरक्षित रखे और हम कभी अपने रास्ते से ना भटके इस भावना से शीतला के रूप में पथवारी का पूजन किया जाता है। अष्टमी के दिन बासी पदार्थ ही देवी को नैवेद्य के रूप में समर्पित किया जाता है, और भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।
इस कारण से ही संपूर्ण उत्तर भारत में शितलासप्तमी व शीतलाष्टमी त्यौहार, बसौड़ा के नाम से विख्यात है।ऐसी मान्यता है कि इस दिन के बाद से बासी भोजन खाना बंद कर दिया जाता है। ये ऋतु का अंतिम दिन होता है जब बासी खाना खा सकते हैं।
इस व्रत को करनेसे शीतला देवी प्रसन्न होती हैं और व्रती के कुल में दाहज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक, दुर्गन्धयुक्त फोडे, नेत्रों के समस्त रोग, शीतलाकी फुंसियोंके चिन्ह तथा शीतला जनित दोष दूर हो जाते हैं।शीतला की उपासना से स्वच्छता और पर्यावरण को सुरक्षित रखने की प्रेरणा मिलती है। इसीलिए शीतला सप्तमी के दिन ठंडा भोजन माता शीतला को चढ़ाया जाता है और ठंडा ही भोजन ग्रहण किया जाता हैं।आज सीतला सप्तमी पर सीतलामाता मन्दिर समिति ने कोविड 19 को ध्यान में रखते हुए सराहनीय व्यवस्था की जिसके कारण पूजन हेतु आई महिलाओं को कोई परेशानी का सामना नही करना पड़ा।