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आष्टा। आष्टा में “स्वास्थ” अब सेवा का माध्यम नही “मेवा” खाने “माल” कमाने का माध्यम हो गया है। कल आष्टा में एक ऐसी घटना घटी जो अपने कार्य या व्यापार के क्षेत्र,सीमित दायरे तक ही सीमित रहता तो मान लिया जाता की व्यापार व्यवसाय में ये तो होता रहता है,प्रतिस्पर्धा के युग मे ये सब चलता है। लेकिन मामला ये नही था,मामला जब सीमित स्थान,दायरे,कार्य क्षेत्र से निकल कर थाने के रोजनामचे तक जा पहुचा। क्योकि ये मामला व्यापार,व्यवसाय से निकल कर मारपीट,गुंडागिर्दी दादागिरी की सीमा पार कर गया था। किसी ने कोई व्यापार शुरू किया तो वैसा ही व्यापार क्या कोई दूसरा शुरू नही कर सकता है,बेशक कर सकता है,सभी को व्यापार व्यवसाय,प्रतिस्पर्धा करने का हक भी है,अधिकार भी है,साफ स्वच्छ व्यापार करने में सब कर सकते है,लेकिन इस नदी में केवल में ही रहूंगा,नही चल सकता है,ना ही चलेगा। इन दिनों आष्टा में जैसे धड़ाधड़ अस्पताल खुल रहे है ठीक वैसे ही उसी तेजी से पैथालॉजी लेब खुली है,जब खुल गई तो उसे कैसे चलाये,की निवेश की गई पूंजी के साथ धड़ाधड़ तेजी से कमाई भी शुरू हो। इसके लिये लम्बे समय से आष्टा में ऐसे संस्थान “चले” के लिये दलाल संस्कृति का जन्म हुआ। कल दो पैथालॉजी के संचालको के बीच जो शर्मशार घटना घटी,मारपीट हुई,लठ्ठ निकले,दादागिरी हुई और तो ओर मामला आष्टा थाने के रोजनामचे तक जा पहुचा, जो किसी के भी लिये ना सही है और ना ही ऐसा होना चाहिये था।

ये घुंघरू जो बजते नही…. पर सुनाई देते है.!

जो घटना घटी उसके गर्त में जा कर अगर कारण देखे तो इसके पीछे कारण “दलाल” ही कारण उभर कर सामने आयेगा। एक दलाल ने जिस मरीज को जांच हेतु जिस लेब पर भेजा था,वो गलती से दूसरी लेब पर पहुच गया था,जिस लेब पर पहुचा वहा जांच की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी,मरीज के पहुचने के पहले जो दलाल था वो देर से पहुचा जब दलाल को लगा उसका लाया गया मरीज किसी दूसरी लेब पर चला गया है तब उसे मरीज से ज्यादा अपनी मरीज को लाने के बदले मिलने वाली दलाली की चिंता शुरू हो गई और मामला वादविवाद,गाली गुफ्तार से दोनों लेब संचालको के बीच मारपीट तक जा पहुची,जो आष्टा के लिये शर्म की बात है। अब जरा स्वास्थ सेवाओ के दलालों,दलालनो की भी कर ली जाये,ये दलाल पहले तो मरीज को अपने कब्जे में लेते है,फिर इन पीड़ित मरीजो को वहां ले जाते है जहाँ इन दलालों,दलालनो को मरीज लाने के बदले सेवा के बदले मेवा प्राप्त होता है। ऐसा नही है की इन दलालों दलालनो को सेवा के बदले मेवा केवल एक स्थान से ही मिलता है,जहा जहा इनका दायरा, कार्य क्षेत्र बढ़ता है,वहा वहा से सेवा के बदले मेवा प्राप्त होता है। काफी समय पूर्व तात्कालिक सीहोर जिले के कलेक्टर एक बार निरीक्षण के दौरान सिविल अस्पताल पहुचे थे तब एक ग्रामीण ने पत्रकारो के सामने कलेक्टर से एक दलालन की खुल कर शिकायत की थी जो दूसरे दिन अखबारों की सुर्खियां बनी थी।

आखिर ये फैले दलाल कौन है,इनके आशीर्वाददाता कौन है,इन दलालों को अक्सर सिविल अस्पताल में,आस पास कभी भी कही भी देखा जा सकता है,ये दलाल आखिर कैसे पनपगये। अगर स्वास्थ विभाग उस वक्त ही जाग जाता जब कलेक्टर के सामने एक दलालन की शिकायत हुई थी तो आज वो छोटा सा घाव नासूर नही बन पाता,लेकिन अब भी समय है,इस आधुनिक,खोजी वैज्ञानिक युग मे जब हमारा देश “कोविड” का टीका बना सकता है,तो क्या हम स्वास्थ के क्षेत्र में पनपी दलाली रूपी बीमारी का ईलाज नही कर सकते है,बस दृढ़ इच्छाशक्ति का होना जरूरी है,जिसका इंतजार है..। कल जो घटना घटी,थाने तक पहुची,इस घटना को लेब व्यवसाय से जुड़े लोगों को गम्भीरता से लेना चाहिये।

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