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आष्टा। इस संसार में कुछ ही लोग ऐसे होते हैं जिनका सानिध्य प्राप्त हो जाए तो हटने का मन नहीं होता है और अपना कल्याण निश्चित होगा।सौभाग्यशाली हैं कि एक नहीं दो महान विभूतियों का सानिध्य प्राप्त हुआ।

शरद पूर्णिमा के अवसर पर आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज एवं नवाचार्य समय सागर महाराज का अवतरण दिवस मनाएंगे। करीब 78 साल पहले इन दो महान व्यक्ति का जन्म हुआ था। जन्म परिचय,व्यक्तित्व साहित्य एवं जन कल्याणकारी मार्गदर्शन जिनका व्यक्तित्व तप, संयम और त्याग सागर जितना विराट है, विशाल है। उनके बारे में लिखते- लिखते कलम थक जाए ,उनके गुण इतने अनगिनत है कि गुणगान करते-करते थक जाएं ।उनके नाम के साथ जुड़ने वाली उपलब्धियां इतनी है उनको लिखते -लिखते ही एक बड़ा लेख बन जाए।

हम बात कर रहे हैं इस धरती के चलते फिरते देवता ,अनासक्त योगी, अपराजेय साधक संत शिरोमणि आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज के बारे में ।साक्षात तीर्थंकर भगवान जैसे प्रखर तपस्वी महामनीषी ,युग दृष्टा ,युग प्रवर्तक, कठोर साधक ,श्रमण संस्कृति के उन्नायक, श्रेष्ठ चर्या पालक ,राष्ट्रीय चिंतक, समाधि सम्राट ,राष्ट्रसंत और भी न जाने कितनी उपाधियां और गुण विशेषण उनके नाम के साथ लगाए जाते हैं। ऐसे गुणों के महासागर जैसा उनका जीवन चरित्र है। आपने मूकमाटी, महाकाव्य,काव्य संग्रह, हिंदी – संस्कृत शतक संग्रह,आगनिक ग्रंथों के पद्यानुवाद संग्रह, प्रवचन संग्रह,स्फुट रचनाएं,…। इंडिया नहीं भारत बोलो, शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी नहीं भारतीय भाषा हो, राष्ट्रभाषा हिन्दी को सम्मान मिले, भारतीय शिक्षा पद्धति लागू हो, गौशाला और कृषि को बढ़ावा देने मांस निर्यात देश पर कलंक के समान, स्वरोजगार को बढ़ावा देने, प्रतिभा पलायन को रोकने को कहा।


मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने दोनों आचार्य भगवंतों के अवतरण दिवस पर विशेष लेख लिखा है।
मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने अपने लेख में बताया कि कर्नाटक राज्य के बेलगांव जिला में सहलगा गांव के पास चिक्कोड़ी नामक गांव के श्री मल्लपा अष्टगे, श्रीमती श्रीमंती अष्टगे के घर में 10 अक्टूबर 1946 शरद पूर्णिमा के पावन दिन शिशु के रूप में शरद पूर्णिमा के चांद का जन्म हुआ था।उनका नाम विद्याधर रखा था।

इसी प्रकार दूसरे चांद का 26 अक्टूबर 1958 को जन्म हुआ और शांतिनाथ नाम रखा।एक ने धर्म को श्रमण कर धर्म को नई पहचान दी वह हमारा समाधि सम्राट आचार्य विद्यासागर महाराज के नाम से पूरे विश्व में प्रसिद्ध एवं जाने माने गए। दूसरे उनके ही परंपराचार्य उत्तराधिकारी प्रथम शिष्य आचार्य समय सागर महाराज के नाम से जाने जा रहे हैं। आपके माता-पिता ने दीक्षा ली और मुनि मल्ली सागर एवं आर्यिका समयमति माताजी के रूप में समाधि ली।सन 1967 में आचार्य देशभूषण महाराज से ब्रह्मचर्य दीक्षा ली और 30 जून 1968 को अजमेर राजस्थान में मुनि दीक्षा आचार्य ज्ञानसागर महाराज से ली तथा 22 नवंबर 1972 को नसीराबाद अजमेर में आचार्य पद मिला।

“बचपन से ही धर्म के संस्कार मिले”

बाल्यावस्था से ही परिवार में धर्म के संस्कार प्राप्त होते रहे।कहावत भी है पूत के लचछन पालने में नजर आते हैं। साधु- संतों की संगति में परिवार सदा आगे रहा।उसी का परिणाम यह रहा कि विद्याधर के साथ-साथ उनका सारा परिवार के मोक्ष गामी चरण इस पद पर चले यह बहुत दुर्लभ होता है।

“लौकिक शिक्षा एवं रुचि”

आचार्य विद्यासागर महाराज की मातृभाषा कन्नड़ थी। पढ़ाई में काफी मेधावी थे। कक्षा 9 वीं तक लौकिक शिक्षा प्राप्त की। लौकिक शिक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करना बहुत सरल था। गणित सूत्र और भूगोल के नक्शे आदि कार्य को बड़ी मेहनत और लगन से करते थे। शतरंज खेलना, शहीद महापुरुषों के फोटो बनाना, गिल्ली-डंडा सहित अनेक रुचियां थी। लेकिन आपका झुकाव धार्मिक मार्ग पर अधिक था।

“बाल्यावस्था में वैराग्य भाव”

कहा जाता है कि भव्य आत्माओं के कुछ चिंह बचपन में ही दिखाई दे जाते हैं। सामान्य बच्चों से अलग अनेक तरह के विशेष गुण रखते थे। बाल्यावस्था से ही शुद्ध और सात्विक भोजन करते थे। मंदिर व भगवान के प्रति अटूट आस्था थी। आपने 9 वर्ष की आयु में जब आचार्य शांति सागर महाराज के प्रवचन सुने तो उनके हृदय में वैराग्य की लहरें उठने लगी। धर्म और आत्म तत्व के प्रति जिज्ञासा बढने लगी ,उम्र के साथ वैराग्य भी बढ़ने लगा।

“गृह त्याग और ब्रह्मचर्य व्रत”

हृदय में जब वैराग्य का भाव बढ़ने लगता है, भला कौन उसे रोक सकता है। आपने 20 वर्ष की आयु में हमेशा के लिए घर का त्याग कर दिया। आध्यात्म की खोज में जयपुर आ गए और 1967 में आपने आचार्य देशभूषण महाराज से आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत और सात प्रतिमा के व्रत लिए।

“आचार्य प्रवर शांति सागर महाराज का सानिध्य मिला”

ब्रह्मचारी विद्याधरजी की ज्ञान पिपासा आपको साहित्य मनीषी, महाकवि, तपोनिधि आचार्य प्रवर शांति सागर महाराज के पास तक खींच लाई। गुरु किसी को शिष्य बनाने के पहले परीक्षा लेते हैं और विद्याधरजी की भी परीक्षा ली तो वह पास हो गए। अनेक गूढ़ ग्रन्थों के रहस्यों को समझाया गया। वही ज्ञान उनके चरित्र में उतरता भी गया।

“मुनि दीक्षा”

आपकी योग्यता और प्रखर प्रतिभा ने आपके गुरु को इतना अधिक प्रभावित किया कि उन्होंने आपको सीधी मुनि दीक्षा देने का निश्चय किया। आपसे पहले कोई भी युवा अवस्था में सीधी मुनि दीक्षा नहीं ली। पारखी ज्ञानसागर महाराज ने अपने ज्योतिष निमित्त ज्ञान से समझ गए कि यही वह देदिव्यमान नक्षत्र है जो श्रमण धर्म संस्कृति को सुरक्षित व जीवित करेगा। भगवान महावीर स्वामी,कुंद – कुंद के मार्ग को सुरक्षित करेगा।

“कठोर साधना,तप का जीवन”

आपकी चर्या में चतुर्थ कालीन मुनि चर्या के दर्शन होते हैं। पंचम काल का प्रभाव भी,आपकी कठोर तप चर्या पर कोई प्रभाव नहीं डाल सका।पंचम काल में आश्चर्य करने वाली तप, त्याग,संयम और कठिन साधना से भरी आपकी दुर्लभ जीवन चर्या,आभा मंडल सभी को अपनी ओर आकर्षित करता है।

सभी धर्म के लोग, विदेशी लोग भी आपका आशीर्वाद प्राप्त कर धन्य मानते हैं। आपने साहित्य और कृतियां थी। हिंदी में 525 ग्रंथों का पद अनुवाद किया कई संस्कृत भाषा की रचना की ।आपके द्वारा रचित सर्वाधिक चर्चित और प्रसिद्ध मूकमाटी महाकाव्य ने साहित्य जगत में धूम मचा दी। अनेक विद्वानों ने मूकमाटी महाकाव्य पर डी लीट, एम फिल शोध प्रबंध रिसर्च पेपर लिख चुके हैं।
“जनकल्याणकारी व देश के काम”

आपने जहां एक और अपनी आत्मा के कल्याण के लिए युवावस्था में संयम पद पर अपने कदम बढ़ा दिए पर कल्याण की भावना से अन्य भव्य जनों को भी मोक्ष मार्ग के पथ पर अग्रसर किया। आप ऐसे युग दृष्टा, महापुरुष, संस्कृति के रक्षक,राष्ट्रप्रेमी, राष्ट्र चिंतक महान संत थे। आपने धर्म के साथ देश के लिए भी सराहनीय भूमिका रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी आपकी समाधि पर कहा था कि इस देश को मार्गदर्शन करने वाला चला गया, में अब किससे मार्गदर्शन लूंगा।

“प्रतिभा स्थली”

उच्च संस्कार और शिक्षा के लिए पुरानी गुरुकुल पद्धति प्रतिभा स्थली की स्थापना कई जगह की। जहां पर काफी पढ़ी लिखी बहने बच्चियों को भारतीय संस्कारों के साथ उच्च शिक्षा प्रदान कर रही है।

“हाथकरधा”

गांधीजी की भावना को साकार करते हुए जनकल्याण के लिए हाथकरधा, चलचरखा,अपनापन जैसे अनेक कार्यों की प्रेरणा व आशीर्वाद दिया। जिन लोगों के बारे में कोई नहीं सोचता, जिन्होंने अपराध किया उन सभी के कल्याण हेतु तिहाड़ जेल, सागर, मुरादाबाद आदि स्थानों की जेल में हाथकरधा प्रारंभ किया।

“जैन संस्कृति की रक्षा के प्रयास”

पाषाण के बने जिनालय भविष्य में अधिक समय तक सुरक्षित रहेंगे।इसी उद्देश्य से अनेकों जगह पाषाण के जिनालय का निर्माण कराया। प्राचीन परंपरा को पुर्नजीवित किया।कई जगह नये तीर्थो की स्थापना की। अनेक प्राचीन जिनालय क्षेत्रों का जिर्णोद्धार कराया। भाग्योदय तीर्थ सागर में स्थापना की। वहां के अस्पताल में हजारों लोग लाभान्वित हो रहे हैं। जिनशासन की शान आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज थे।

“आष्टा हैडलाइन परिवार की ओर से जन्मदिन पर शत शत वंदन-नमन”

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