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आष्टा। नगर में चल रही संत श्री गोविंद जाने की कथा के तीसरे दिवस पर आज मधुर वचन सुनाते हुए संत श्री ने जीवन मंत्र और रघुकुल के संस्कारों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि,जीवन में हमेशा लिखे हुए कागज की तरह ही बनो लिखे हुए कागज मूल्यवान होते हैं रद्दी और कोरे कागज की तरह बनोगे तो रोड पर फेंक दिए जाओगे ।

अपने जीवन की किताब में अनमोल शब्द लिखने का प्रयास करो ताकि आपकी हमेशा कद्र होती रहे। जो बदला लेने की भावना रखें वह दृष्टि है पर जो दुष्ट को भी बदल दे वही संत और महात्मा है । हमेशा बदले की नहीं बदलने के भाव रखो । भक्ति करो तो मीराबाई जैसी करो भक्ति करने में धन की आवश्यकता नहीं होती है । राजा की बेटी अपने राजपथ को त्याग कर गोवर्धन की धुन में लग गई एक दिन गोविंद को स्वयं उनके घर आना पड़ा। भक्ति में ही सच्ची शक्ति है मेरा तो गिरधर गोपाल दूसरों ना कोई । जिस दिन धन से नहीं धणी से प्रेम हो जाएगा उस दिन गिरधर आपसे मिलने आएगा । भजन करते समय मेरा अपना तुम्हारा अच्छा बुरा सामने आ गया तो समझो आपका भजन व्यर्थ है । जिन्होंने गुरु मंत्र की ज्यादा हासिल कर ली जिनके मन में गुरुमुखी है वह एक दिन रघुनाथ जी से गुण धारण कर लेता है ।

कथा को सुन लेने से कुछ भी नहीं होता कथा को सार्थक आत्मा में पी लेने से आपका भला होता है । यह अमृत रूपी शब्द आपके जीवन को धन्य करते हैं,जब जब होई धर्म की हानि, बारहि असुर अधम अभिमानी.तब तब धर प्रभु विविध शरीरा, हरहि दयानिधि सज्जन पीड़ा

अर्थात
जब जब इस धरती पर धर्म की हानि होगी, असुरों और अधर्मियों का अन्याय धरती पर बढ़ जाएगा. तब तब प्रभु अलग अलग रूपों में अवतार लेकर धरती पर आयेंगे, और सज्जनों और साधु संतों को उन अधर्मियों के अन्याय से मुक्ति दिलाएंगे ।

अवधपुरी में रघुकुल शिरोमणि दशरथ नाम के राजा हुए, जिनका नाम वेदों में विख्यात है। वे धर्मधुरंधर, गुणों के भंडार और ज्ञानी थे। उनके हृदय में शार्गंधनुष धारण करनेवाले भगवान की भक्ति थी, और उनकी बुद्धि भी उन्हीं में लगी रहती थी। आज कथा स्थल पर कथा श्रवण करने बड़ी संख्या में भक्त उपस्तिथ थे।

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