आष्टा । चातुर्मास में सभी को धर्म लाभ मिलता है। सभी प्रकार के लोग हुआ करते हैं। सेवा व समर्पण भाव आगे लाता है। मुनि उन्हीं का नाम पुकारते हैं जो मुनि के साथ जुड़े रहते हैं। दुनिया में लोग पड़ोसी के सुख से दुःखी हैं।भोग विलास से समय निकालकर धर्म आराधना करते हैं,वे पुण्य अर्जित करते हैं।अरिहंत पुरम की युवा पीढ़ी ने चातुर्मास में काफी लगन से मुनि संघ की सेवा कर धर्म आराधना की ,इन युवाओं की सेवा की सराहना करते हैं।
ऐसे समाज का भविष्य उज्जवल रहता है जिनकी युवा पीढ़ी धर्म आराधना और संतों की सेवा में रहती है, उनकी सफलता कदम चूमती है। बुजुर्गो का सानिध्य भी जरूरी है। धर्म क्षेत्र में काम करके दिखाएं। मुंह से तारीफ नहीं दुनिया तारीफ करें।
48 दिनों तक निर्विघ्न भक्तांबर विधान, पर्यूषण महापर्व में विभिन्न धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया। चातुर्मास का लाभ उठाया है समाज ने। युवा पीढ़ी में सुधार गुरुओं के सानिध्य के कारण हो रहा है। हर साल चातुर्मास कराएं, भले ही मंदिर नहीं बने। समाज एकजुट व युवा पीढ़ी सुधरती है।
बहुत लाभ व ज्ञान में वृद्धि होती है। विहार करते हुए योगी सुखी रहते हैं। वे रमता जोगी बहता पानी की तरह है। पूरे भारत में विचरण करते हैं और पूरा भारत उनका परिवार है। निर्विघ्न चातुर्मास सआनंद संपन्न। संत का काम सभी को एक सूत्र में बांधना है। गुरु का आशीर्वाद प्राप्त हो तो कोई विध्न नहीं आता है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में एक गुरु होना जरूरी है।आप सभी के गुणों में वृद्धि हो। समाज सहित आष्टा वाले खूब उन्नति करें।
“संयम का उपकरण है पिच्छिका”
कल्याण वहीं करते हैं जो नियम लेते हैं। ऐलक विनमित सागर महाराज, ब्रह्मचारी श्रीपाल भैय्या अमलाह भी मंच पर आसीन थे। मुनिश्री विनंद सागर महाराज को नई पिच्छिका सौंपने का सौभाग्य व्रतियों को मिला। मुनिश्री विनंद सागर महाराज की पुरानी पिच्छिका सागरमल, धर्मेन्द्र कुमार, जितेंद्र कुमार जैन अमलाह परिवार को मिली।
वहीं ऐलक विनमित सागर महाराज को नई पिच्छिका नये व्रतियों ने सौंपी तथा आपकी पुरानी पिच्छिका गृहस्थ जीवन के भाई को दी गई। इस अवसर पर आचार्य श्री की पूजा में अर्ध्य अर्पित करने का सौभाग्य अरिहंत पुरम के विभिन्न मंचों एवं मंदिर समिति तथा मुनि सेवा समिति आदि को मिला।इस अवसर पर काफी संख्या में समाज जन उपस्थित थे। नपा अध्यक्ष प्रतिनिधि श्री रायसिंह मेवाडा का कार्यक्रम में सम्मान किया गया।
“पत्रकारो का किया सम्मान”
चातुर्मास में मुनि श्री के प्रवचनों को,मंदिर जी मे हुए धार्मिक कार्यक्रमो को समाचारों के माध्यम से जन जन तक पहुचने वाले नगर के पत्रकारो का आज श्री चन्द्रप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर समिति,अरिहन्तपुरम मुनि सेवा चातुर्मास समिति ने पिच्छिका परिवर्तन कार्यक्रम में स्वागत सम्मान किया।
सभी पत्रकारो को शाल श्रीफल एवं स्मृति चिन्ह भेंट किये एवं मुनि श्री ने सभी पत्रकारो को शुभाशीर्वाद प्रदान कर उनेह अपने हाथों से कलम भेंट की। समिति की ओर से श्री धनरुपमल जैन ने सभी पत्रकारो की अगवानी कर स्वागत किया
किला मन्दिर पर पिच्छिका परिवर्तन समारोह कल
मोर पंखों से बनी पिच्छिका का होगा आज विमोचन
नवीन पिच्छिका धारण करेंगे मुनिराज ,पिच्छिका की शोभायात्रा निकाली जायेगी
आष्टा। कल सोमवार 18 नवंबर को दोपहर साढ़े बारह बजे श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज एवं नवाचार्य समय सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज, मुनिश्री निष्प्रह सागर महाराज, मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज एवं मुनिश्री निष्काम सागर महाराज का पिच्छिका परिवर्तन समारोह आयोजित किया गया है।
दिगम्बर जैन साधुगण जो कि नग्न दिगंबर अवस्था में रहकर समस्त प्रकार के परिग्रह को त्याग कर इस धरती पर विचरण करते है ,जिन्हें शास्त्रों में चलते फिरते तीर्थ की उपमा भी दी गई है ।शास्त्रों के अनुसार यह दिगंबर साधु अपने पास केवल तीन उपकरण ही रखते है। जल उपयोग हेतु नारियल से बना हुआ कमंडल का पात्र जो कि प्राकृतिक होता है, स्व का अध्ययन करने हेतु एक शास्त्र जिसका नित्य अध्ययन कर मुनिराज जी अपना समय धर्म -ध्यान में व्यतित करते है । स्व के अध्ययन में लगाकर मन को स्थिरता में लगाये रखते है ।
वही अपने हाथों में एक मोर पंख की बनी हुई सुंदर पिच्छिका हर समय रखते है ,जिसका उपयोग मुनिराज वस्तु के आदान -प्रदान करने ,आदान निक्षेपण समिति का पालन करते हुए कोई भी वस्तु उठाते व रखते समय इस बात का ध्यान रखते है कि कोई सूक्ष्म जीव का हमारे द्वारा घात नही हो, किसी प्रकार की उस जीव को हानि न पहुँचे इस लिए वह मोर पंख की बनी हुई पिच्छिका से किसी भी जगह को साफ कर फिर उसका उपयोग करते है।
यह मोर पंख की बनी हुई पिच्छिका जैन मुनि को दीक्षा के समय दीक्षा गुरु द्वारा प्रदान की जाती है। जिसे जीवन पर्यंत अपने हाथों में रख कर अपनी चर्या का पालन करना होता है ।उक्त पिच्छिका के कोमल पंखों में साल भर तक उपयोग करने से मृदुता पन समाप्त होने लगता है, इसलिए मुनिराज चातुर्मास के उपरांत उक्त पिच्छिका को परिवर्तन कर नई पिच्छिका धारण करते है ।
पुरानी पिच्छिका संयमी श्रावक को मुनिश्री द्वारा अपने हाथों से प्रदान की जाती है। पिच्छिका परिवर्तन का समारोह धर्म प्रभावना का एक अंग होता है। यह संयम का उपकरण होती है ओर हमे संयम का मार्ग बताती है ।श्रद्धा और आस्था के अभूतपूर्व आयोजन में सभी लोग भाग लेकर के सदश्रावकों के पुण्य की अनुमोदना करते है। दिगम्बर जैन पंचायत समिति के श्री शरद जैन ने बताया कि नगर के दिव्योदय जैन तीर्थ किला मंदिर पर आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम शिष्य व आचार्य श्री समय सागर जी महाराज की विशेष अनुकम्पा से विराजमान मुनिश्री निष्पक्ष सागर जी, मुनिश्री निष्प्रह सागर जी, मुनिश्री निष्कंप सागर जी, मुनिश्री निष्काम सागर जी महाराज ससंघ का पिच्छिका परिवर्तन
कार्यक्रम के अंतर्गत सोमवार 18 नवंबर को दोपहर 12:30 बजे नवीन पिच्छिका की शोभायात्रा श्री नेमिनाथ जिन मंदिर नेमि नगर सांईं कॉलोनी से प्रारम्भ होकर दोपहर 1 बजे से विद्यासागर सभागार किला मंदिर परिसर में भव्य पिच्छिका परिवर्तन समारोह सम्पन्न होगा। आयोजन में देश भर से गुरु भक्त शामिल होंगे। समिति द्वारा आयोजन की वृहद स्तर पर तैयारियां की गई है।
श्री दिगंबर जैन पंचायत समिति व समाज के अध्यक्ष आनंद जैन पोरवाल , महामंत्री कैलाश जैन चित्रलोक ,श्री धर्म प्रभावना समिति के श्री संजय जैन व श्री मुनि सेवा समिति के श्री संदीप जैन, धीरज जैन ने समस्त धर्म प्रेमी बंधुओं, माताओं , बहनों से आयोजन में अधिक से अधिक संख्या में सहभागिता करने की अपील की गई है।