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जो रिश्वत लेते पकड़ाया,जिसका इसमें नाम आया उस पर विभाग ने अभी तक कोई कार्यवाही क्यो नही की.?

दोस्तो मित्रों एवं आष्टा हैडलाइन के लाखों पाठकों आज आपको एक ऐसे घुंघरू की आवाज से रूबरू कराता हु,जिसकी गूंज आष्टा जनपद से लेकर दिल्ली तक गूंजी है । मामला है प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के उस ड्रीम योजना की जिसको लेकर उन्होंने वर्ष 2014 में दिल्ली में इस अभियान की घोषणा की थी।

उस योजना का नाम है स्वच्छ भारत मिशन जिसने पूरे देश मे ही नही विश्व मे उसकी सफलता की चर्चा हुई। होना भी चाहिये क्योंकि पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने इस छोटे लेकिन अति महत्वपूर्ण काम की चिंता ही नही की बल्कि उसका ब्लू प्रिंट बना कर उस योजना को लागू कर जमीन पर उतारा,ग्रामो में जो ग्रामीण खास कर महिलाएं-बालिकाएं खुले में शौच हेतु जाते थे उनेह उनके घर मे ही इज्जत घर मतलब शौचालय बना कर दिये।

पूरे देश मे बीते 10 वर्षो में करीब 11 करोड़ शौचालयों का निर्माण देश मे करा कर ग्रामीण नागरिको को खास कर महिलाओं को एक बड़ी सौगात उपलब्ध कराई । पूरे देश की तरह ये योजना मप्र में भी सरकार के सद प्रयासों से उम्मीद से अधिक सफल हुई। सीहोर जिले में जिले की आष्टा जनपद में भी इस योजना में हजारों शौचालयों का निर्माण हुआ,ग्रामीणों को इससे बड़ी राहत भी मिली । लेकिन क्या कोई उम्मीद कर सकता था की इस योजना में भी जिम्मेदार अधिकारी कर्मचारी पांच पांच सौ की रिश्वत ले कर पात्र ओर रिश्वत नही देने वाले को अपात्र कर सकते है..?

हाँ ऐसा आष्टा जनपद में हुआ ही नही बल्कि लोकायुक्त पुलिस ने शौचालयों की फाइलों को स्वीकृत करने के बदले 500-500 प्रति फाइल स्वीकृति के नाम पर 3 हजार की रिश्वत लेते रंगे हाथों एक पीसीओ को पकड़ा,जिस कर्मी ने पकड़ाया उसने कैमरे के सामने जो बात की वो ओर भी बड़ी गम्भीर ही नही अति गम्भीर है। कैमरे के सामने फरियादी पीड़ित ने कहा था की पंचायत की 9 फाइलें शौचालय की स्वीकृति के लिये आज 3 हजार दिये थे ।

पीसीओ को जिसे रंगे हाथों पकड़ा है,इसके पहले वो 50 शौचालयों की फाइल स्वीकृति के बदले इस योजना के ब्लॉक समन्वयक को सात से आठ हजार ऑनलाइन दे चुका था। आष्टा जनपद में बिना पैसे कोई काम नही होता है-पीड़ित के इस बयान ने पूरी आष्टा जनपद में क्या हो रहा है,क्या चल रहा है,जिम्मेदार क्यो मौन है.? मतलब साफ है प्रसाद सब को लगता था,सबमे बटता था। सब मे मतलब किस किस में हिस्सा बांटा जाता था या एक ही पूरा डकार जाता था ये जांच के विषय है।


3 हजार की रिश्वत में रंगे हाथों पकड़ाने, उसमे ओर नामो का उल्लेख होने से अब बड़ा प्रश्न यह खड़ा होता है की जब ये सब कुछ हो रहा था,जिसकी जानकारी प्रमुख को भी थी,क्योकि पीड़ित ने कैमरे के सामने कहा था की उसने इसकी शिकायत सीईओ को भी की थी,तब उन्होंने पीसीओ के हस्ताक्षर की अनिवार्यता खत्म कर दी थी।

पीसीओ के हस्ताक्षर की अनिवार्यता खत्म करने से हुआ क्या.? रिश्वत लेते तो पीसीओ ही पकड़ा गया है ना.? मतलब सब साफ साफ है। अब ये मामला तो एक पंचायत का सामने आ गया मतलब अन्य पंचायतों में भी भांग तो पूरी तरह से घुली है.? क्योकि शौचालय की जो फाइल जहां से चलती है,जहाँ तक पहुचती है वो रास्ता सभी पंचायतों के लिये एक ही है।

जब सभी पंचायतों की उक्त योजना की फाइल एक ही रास्ते को पार कर एक ही मुकाम पर पहुचती है तो निश्चित उसके स्टॉप भी फिक्स होंगे,जब किसी यात्री बस के रवाना हो कर गंतव्य तक पहुचने के दौरान स्टॉप फिक्स होते है,स्टॉप पर जब बस रुकती है तो वहां चाय पानी स्वल्पाहार एवं कही कही गुलाबजामुन की झड़ती भी उड़ाई जाती है।


ये घुंघरू जो बजते नही पर सुनाई जरूर देती है…

जब तक सब खा पी ना ले तब तक बस आगे नही बढ़ती है। यही हाल शौचालयों की फाइलों का भी निश्चित होगा जो एक केस से उजागर है.? अब प्रश्न यह है कि जब पूरे तालाब में ही भांग घुली हो तो नशा तो सबको ही चढ़ता होगा। अब जनपद रूपी इस तालाब का नशा उतारने की जरूरत है और इसके लिये सभी को नशा मुक्ति केंद्र भेजने की जरूरत है।

ये घुंघरू जो बजते नही पर सुनाई देते है…..

पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने अभी तक विभागीय कार्यवाही भी नही की गई है । जनपद में क्या हाल है इसका अंदाजा जिला पंचायत सीहोर से आष्टा जनपद पंचायत की एक पंचायत के तात्कालिक सरपंच-सचिव की लापरवाही के कारण शासन को 1 करोड़ 54 लाख की राशि भुगतान करना पडी उसको लेकर जिला पंचायत सीईओ ने अप्रैल 2024 में इन दोनों को कारण बताओ नोटिश जारी कर 7 दिन में जवाब देने को कहा था लेकिन 7 दिन की सीमा के बदले 7 माह के बाद भी 1 करोड़ 54 लाख के मामले को ना जाने क्यो ठंडे बस्ते में रखा गया है, ।

सूत्र बताते है इस मामले में जो फसे है वे स्थानीय एक अधिकारी के संपर्क में है,संपर्क के पीछे का क्या कारण है बूझो तो जाने..? जिनकी लापरवाही के कारण शासन को जो 1 करोड़ 54 लाख का भुगतान करना पड़ा वो राशि तत्कालीन जिम्मेदारों से जिन्हें जांच में इस राशि का कारण माना है उनसे बसूली जाने में आखिर देरी क्यो हो रही है,वो कौन है जो इस मामले को दबा कर टाल रहे है क्यो.? इसकी भी जांच जरूरी है।


अब मांग उठ रही है की आष्टा जनपद में स्वच्छ भारत मिशन के तहत जो जो कार्य हुए,बने शौचालय निर्माण की हर पंचायत में जांच होना चाहिये, जो हितग्राही है उनसे पूछा जाये ताकि कहा कहा कितना भ्रष्टाचार हुआ है..का पूरा खुलासा हो सके.! अगर निष्पक्ष जांच हो तो कई के घुंघरू बज सकते है। वैसे जब से लोकायुक्त की कार्यवाही आष्टा जनपद में हुई है तभी से ना जाने क्यो यह पदस्थ दो तीन का ब्लडप्रेशर बड़ा हुआ है।

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