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आष्टा। जितना समझ में आता है उतना ही पढ़ें, निर्विकल्प ज्ञान होना चाहिए। सम्यकदर्शन के लिए भगवान की पूजा अर्चना आराधना स्वाध्याय करते हैं। भक्ति स्वाध्याय से भी होती है। भक्ति योग में ध्यान से भक्ति करें।गुणीजनों को देख कर भक्ति करते हैं। दुःख, मुसीबत में ही भक्ति नहीं करते बल्कि आत्मिक है वह कल्याण कारी है। सभी धर्म एक समान है। बिना स्वध्याय के भी कल्याण कर लिया और अनेक ने स्वाध्याय करने के बाद भी कल्याण नहीं कर पाए। ज्ञान दर्पण अवश्य देखें।

चरित्र एक और पुराण अनेक है।जो गलतियां की उसका प्रायश्चित अवश्य करें।स्वयं सेवक मतलब स्वयं की ही नहीं अपितु अन्य की भी सेवा करते हैं,स्वार्थ त्यागने वाले स्वयं सेवक है।भगवान की जरूरत हमें है, भगवान को हमारी जरूरत नहीं है।

उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर मुनि भूतबलि सागर महाराज एवं मुनि सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं। मुनिश्री ने कहा कि अल्प अवगुणों को बढ़ा चढ़ाकर नहीं पेश करें। स्वयंभू स्तोत्र पाठ को श्रवण कराते हुए कहा कि वैराग्य निमित्त से होता है।

कमठ को पार्श्वनाथ ने उपदेश देकर उनके भाव बदले। सम्यकदृष्टि 16 स्वर्ग जाते हैं। मिथ्या दृष्टि नरक में जाते है।देशना तीसरी लब्धी है। स्वयंभू गुरुकुल में नहीं जाते,वह स्वयं तीन ज्ञान लेकर आए थे। मुनि भूतबलि सागर महाराज पंचम काल में काले, पीले वस्त्र धारण कर रहे हैं।चौथे काल में तीर्थंकरों का सानिध्य प्राप्त था।दुष्ट भाव से दुर्गति होगी।

जो गलतियां की उसका प्रायश्चित करना चाहिए। स्वभाव में आए। मुनि सागर महाराज ने आगे कहा कि निर्वल, निर्मल ज्ञान रह गया।जो ब्रम्हचारी है वह गृहस्थ आश्रम में है। प्रतिमा धारी संयास आश्रम में है।सूरज उगता है,अंधकार को विलीन कर देता है। चंद्रमा अपनी किरणों से शीतलता प्रदान करता है। भगवान ने आपको आत्म कल्याण के मार्ग पर अग्रसर किया। प्राणियों के हितकारक है ।चौथे काल में तीर्थंकरों का जन्म होता है।

भूतबलि सागर महाराज व मुनि सागर महाराज ने कहा आदिनाथ हो या पार्श्वनाथ ने स्वयं ही अपना आत्म कल्याण किया। सभी जीवों को मोक्ष मार्ग का उपदेश दिया। जैन धर्म किसका जो माने उसका। जैन धर्म को मंदिर तक ही सीमित नहीं रखें। धर्म कर्नाटक और दक्षिण में रहेगा। पहले मंदिर की सुरक्षा बढ़ाए, अयोध्या की तरह।राग रहित होकर अपना कल्याण कर लिया और सभी को प्रेरणा दे गए। भक्ति दिन और रात में भी की जा सकती है। भूतबलि सागर महाराज ने कहा मोबाइल का सदुपयोग करें, दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।रात में जाग रहें हैं, दिन में सो रहे हैं। सूर्योदय के पहले अवश्य उठना चाहिए। इष्टदेव की आराधना करें।

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