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आष्टा। नगर की साईं कॉलोनी में बाबा रामदेव मंदिर के समीप चल रही श्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिन कथावाचक पंडित गीता प्रसाद शर्मा ने श्रीकृष्ण-रुक्मणी विवाह का प्रसंग सुनाया। कहा कि भगवान श्रीकृष्ण के साथ हमेशा देवी राधा का नाम आता है। भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाओं में यह दिखाया भी था कि श्रीराधा और वह दो नहीं बल्कि एक ही हैं, लेकिन देवी राधा के साथ श्रीकृष्ण का लौकिक विवाह नहीं हो पाया।देवी राधा के बाद भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय देवी रुक्मणी हुईं।

कथा वाचक पं श्री गीताप्रसाद शर्मा

कथावाचक पंडित शर्मा ने कहा कि रुकमणी की विदाई मैं आप लोग अपनी अपनी एक -एक बुराइयां मेरी झोली में डाल देवे। कभी भी अपने माता-पिता का अनादर न करें, पत्नियां अपने पति को धोखा न दे तथा पति भी अपनी पत्नी का कहना मानें। देवी रुक्मणी और श्रीकृष्ण के बीच प्रेम कैसे हुआ इसकी बड़ी अनोखी कहानी है।

देवी रुक्मणी विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री थी। रुक्मणी अपनी बुद्धिमता, सौंदर्य और न्याय प्रिय व्यवहार के लिए प्रसिद्ध थीं। रुक्मणि का पूरा बचपन श्रीकृष्ण के साहस और वीरता की कहानियां सुनते हुए बीता था। जब विवाह की उम्र हुई तो इनके लिए कई रिश्ते आए लेकिन उन्होंने सभी को मना कर दिया। उनके विवाह को लेकर माता-पिता और भाई चिंतित थे। बाद में रुक्मणी का श्री कृष्ण से विवाह हुआ।भागवत कथा के छठे दिन श्रीकृष्ण-रुक्मणी विवाह प्रसंग का वर्णन किया गया। श्रद्धालुओं ने श्री कृष्ण व रुक्मणी विवाह धूमधाम से मनाया।

पहली बार भागवत कथा के दौरान गाजे -बाजे से बारात भी निकाली गई और स्वागत सत्कार भी बारातियों का किया गया और परंपरागत तरीके से उपहार आदि भेंट किए। राधा-कृष्ण की बारात भी निकाली गई, जिसमें श्रद्धालुओं ने राधा-कृष्ण की पूजा अर्चना की। कथावाचक पंडित शर्मा ने कहा कि भागवत कथा में विशेष महत्व भगवान श्रीकृष्ण – रुक्मणी विवाह प्रसंग है। इसमें माता रुक्मणी के द्वारा भगवान को लिखे गए प्रेम पत्र पर विशेष महत्व देते हुए सामाजिक सरोकार में पति-पत्नी के दांपत्य जीवन के बारे में उल्लेख किया। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने रुक्मणी माता से विवाह किया।


कलयुग में नाम स्मरण का ही महत्व
व्यास गादी से पंडित श्री शर्मा ने कहा कि जो मनुष्य अहंकार भाव से मुक्त होकर निष्काम भाव से भगवान का स्मरण करता है उसे सहज भाव से भगवान स्वीकार कर अपने में समाहित कर लेते हैं। मानव सेवा ही माधव सेवा है। जो मनुष्य नर में नारायण को महसूस करता है, परमात्मा उसके समीप होते है। हम उन परमपिता भगवान शिव की कृपा को पाना चाहते हैं तो निष्काम भाव से उसे भजे। वह हमारे निकट है।

व्यासपीठ से कथा का वाचन करते हुए पंडित गीता प्रसाद शर्मा ने भक्ति व वैराग्य की व्याख्या करते हुए कहा परमात्मा का निष्काम भाव से चिंतन स्मरण व मनन करना भक्ति की ओर ले जाता है। भक्ति का अगला स्वरूप वैराग्य के रूप में हमारे सामने आता है। वैराग्य का अर्थ है निरर्थक वस्तुओं का त्याग कर उसे ग्रहण करना जो मानव जीवन की सार्थकता है। हम 84 लाख योनियों में भटक कर जब मानव जन्म लेते हैं तो यह उसी की कृपा है। परमात्मा के द्वारा दिया गया यह शरीर हम उसे ही समर्पित करें यह वैराग्य की स्थिति है।

मुख्य यजमान साधना – प्रेम कुमार राय ,डॉ कुणाल- सपना राय सहित अखिलेश राय आदि ने भक्ति भाव के साथ आरती की। कथा के समापन पर पूजा अर्चना, छप्पन भोग लगाएं व महाआरती कर प्रसादी वितरण किया। साथ ही विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम हुए। इस दौरान समाजसेवी अखिलेश राय, अवधनारायण सोनी, अरुणा सुदेश राय,सहकारी नेता देवीसिंह परमार, प्राचार्य प्रेम नारायण शर्मा, सुदीप जायसवाल ,राजा पारख,कृपालसिंह ठाकुर ,मधु परमार, मनोज मयूरी सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे।

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