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“श्रुतवाणी पर्व पर चंद्रप्रभु मंदिर गंज से निकाली भव्य शोभायात्रा
श्रावक-श्राविकाएं मस्तिष्क पर जिनवाणी लेकर शोभायात्रा में चलें”

श्रुत आराधना महापर्व श्रुतपंचमी बुधवार 24 मई ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी शुभ तिथि को नगर सहित क्षेत्र में बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाई गई। श्री चंद्रप्रभु दिगंबर जैन मंदिर गंज से ढोल ढमाके के साथ समाज के श्रावक – श्राविकाओं ने अपने मस्तिष्क पर जिनवाणी रखकर नगर के प्रमुख मार्गो से शोभायात्रा निकाली।सामान्यतः नगर सहित पूरे देश में श्रुत आराधना का यह पर्व अत्यंत भक्ति-भाव व प्रभावना पूर्वक मनाया। नगर सहित अनेक स्थानों में प्रभावना जुलूस भी निकाला गया।

श्रुत पंचमी पर्व दिगंबर जैन समाज द्वारा बड़े हर्ष और उत्साह के साथ मनाया गया। श्रुतवाणी पर्व पर श्री चंद्रप्रभु गंज मंदिर जी से नित-नियम श्री जिनेन्द्र अभिषेक, शांतिधारा के उपरांत सुबह 7:30 बजे पश्चात मां जिनवाणी की शोभायात्रा निकाली गई। शोभायात्रा गंज मंदिर जी से प्रारम्भ होकर गंज चौराहा,गल चौराहा, मानस भवन, सुभाष चौक , पुराना दशहरा मैदान,धोबीपुरा,गंज चौराहा होते हुए गंज मंदिर जी में समापन हुआ। सभी पुरुष वर्ग धोती- दुपट्टे और महिला वर्ग केसरिया साड़ी पहन कर धर्म प्रभावना कर रहे थे।


श्री चंद्रप्रभु मंदिर गंज समिति के राजेंद्र गंगवाल एवं राजेश जैन ने बताया कि ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी शुभ तिथि को इस युग के अंतिम तीर्थंकर व वर्तमान शासन नायक भगवान महावीर स्वामी के मोक्षगमन के उपरांत उनकी दिव्यध्वनि से प्राप्त वाणी का लेखनकार्य श्री षटखंडागम ग्रंथ के रूप में महामुनि आचार्य पुष्पदंत व भूतबलि महाराज के द्वारा सम्पन्न हुआ था।तीर्थंकर प्रभु की दिव्य ध्वनि से प्राप्त वाणी, जो समस्त जीवों के कल्याण की आधार है, उस वाणी के लेखन कार्य के क्रम में प्रथम ग्रंथ के लेखन की पूर्णता ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी इसी तिथि को हुई थी।

तभी से सभी श्रावकों ने इस तिथि को विशेष पर्व को मनाना प्रारम्भ किया।भगवान महावीर स्वामी के मोक्ष गमन के बाद उनकी वाणी का पूर्वाचार्यों द्वारा लेखन कार्य हुआ। अतः वर्तमान में भी भगवान की वाणी हम लोगों के बीच उपलब्ध है ,जिसको हम लोग निर्ग्रन्थ मुनिराजों के माध्यम से जानते हैं।पापों से निर्वृत्ति का मार्ग ही जीव के कल्याण का एक मात्र उपाय है, जिसे चारित्र अथवा आचरण कहते हैं। और हम लोग चारित्र का पालन तभी कर सकते हैं ,जब हमको जिनेन्द्र भगवान द्वारा बताएं मार्ग का ज्ञान हो और यह ज्ञान मात्र चारित्र धारी मुनिराजों द्वारा तथा शास्त्रों के अध्ययन से ही संभव है।श्रुत पंचमी पर्व के शुभ अवसर पर अत्यंत भक्ति-भाव से जिनवाणी माता की पूजन की गई तथा अपने जिनालय में विराजमान शास्त्रों के रूप में जिनवाणी का रख रखाव(वैयावृत्ति) की गई ।

वर्तमान में आपाधापी के युग में हम सभी तनाव मुक्ति हेतु अनेक प्रयत्न करते हैं ,लेकिन यथार्थ में जिनवाणी के अध्ययन से जीवन में जो प्रसन्नता आती है और आत्म विश्वास में जो वृद्धि होती है ।वह संसार में किसी अन्य माध्यम से संभव नहीं है ,अतः हम सभी को स्वाध्याय को अपने जीवन का अंग बनाना चाहिए।दुर्लभ मनुष्य जीवन प्राप्त करके हम लोग जिनेन्द्र भगवान की वाणी अर्थात जिनवाणी को अभी स्वाध्याय द्वारा प्राप्त नहीं करेंगे तो किस पर्याय में प्राप्त करेंगे।

“स्वच्छ सर्वेक्षण 2023 मुख्य मंत्री (शहरी) महाअभियान”
स्वच्छता की दौड़ मे तेज गती से दौड़ रही है नगर पालिका आष्टा”

शासन के निर्देशानुसार एवं मुख्य नगर पालिका अधिकारी श्री नन्द किशोर पारसनिया नगर पालिका परिषद आष्टा के आदेशानुसार स्वच्छता के प्रति आष्टा शहर को नम्बर 1 बनाने के लिये स्वच्छता की रेस मे अपनी दौड़ को तेज कर दिया है।

आज मुख्य मंत्री (शहरी) महा अभियान के अंतर्गत निकाय क्षेत्र मे फिकल स्लज संग्रहण किया गया (घरो के सेप्टिक टेकों को खाली कराया गया) उस स्लज का ट्रीटमेन्ट करने के लिये एफ.एस.टी.पी. प्लांट ले जाया गया और विधायक प्रतिनिधि एवं स्वच्छता ब्रांड एम्बेसडर रायसिंह मेवाड़ा द्वारा लोगों से अपील की गई की वे अपने घरो से ही कचरे को अलग-अलग दे, साथ ही शहर को स्वच्छ और सुंदर बनाने मे अपना योगदान दे हर तीन वर्ष मे अपने घरो का सेप्टिक टेंक को खाली कराये। अब की बार नगर पालिका आष्टा को स्वच्छता मे नम्बर 1 लाने का भरपूर प्रयास कर रहे है ।

“अति प्राचीन स्थल खिंचीखेड़ा (मानाखेड़ी )में श्रीमद् भागवत कथा..
5वें दिन कथा व्यास अग्निहोत्री बंधु ने कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन किया, श्रोता हुए भाव विभोर”

अति प्राचीन स्थल श्री चिंता हरण हनुमान मंदिर खिंचीखेड़ा (मानाखेड़ी )पर श्रीं नार्मेदेश्वर मंदिर के स्थापना दिवस को लेकर जारी श्रीमद् भागवत कथा आयोजित की जा रही है। सप्त दिवसीय संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिन कथा व्यास पंडित अग्निहोत्री बंधु ने भगवान श्री कृष्ण की विभिन्न बाल लीलाओं और रासलीला का भावपूर्ण वर्णन किया। भगवान श्री कृष्ण की मनोरम झांकी का अवलोकन कराया है ।

कथा व्यास ने कृष्ण जन्म कथा के बाद कथा को आगे बढ़ाते हुए पूतना वध, यशोदा मां के साथ बालपन की शरारतें, भगवान श्रीकृष्ण का गो प्रेम, कालिया नाग मान मर्दन, माखन चोरी गोपियों का प्रसंग सहित अन्य कई प्रसंगों का कथा के दौरान वर्णन किया। कंस का आमंत्रण मिलने के बाद भगवान श्री कृष्ण बड़े भाई बलराम जी के साथ मथुरा को प्रस्थान करते हैं। श्रीमद् भागवत कथा के दौरान कथा व्यास द्वारा बीच-बीच में सुनाए गए भजन पर श्रोता भाव विभोर हो गए।


पंडित अग्निहोत्री बंधु ने कहा कि गुरु ही मोक्ष के द्वार खोलते हैं मोक्ष का द्वार खोलते हैं। गुरु के बिना ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं है। भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लेते ही कर्म का चयन किया। नन्हें कृष्ण द्वारा जन्म के छठे दिन ही शकटासुर का वध कर दिया, सातवें दिन पूतना को मौत की नींद सुला दिया। तीन महीने के थे तो कान्हा ने व्योमासुर को मार गिराया। प्रभु ने बाल्यकाल में ही कालिया वध किया और सात वर्ष की आयु में गोवर्धन पर्वत को उठा कर इंद्र के अभिमान को चूर-चूर किया।

गोकुल में गोचरण किया तथा गीता का उपदेश देकर हमें कर्मयोग का ज्ञान सिखाया। प्रत्येक व्यक्ति को कर्म के माध्यम से जीवन में अग्रसर रहना चाहिए। सधाा सुख केवल भगवान के चरणों में है। भगवान के सम्मुख और उनके शरणागत होने को ही भागवत कथा है। भागवत कथा से कल्याणकारी और कोई भी साधन नहीं है इसलिए व्यस्त जीवन से समय निकालकर कथा को आवश्यक महत्व देना चाहिए। भागवत कथा से बड़ा कोई सत्य नहीं है।

भागवत कथा अमृत है। इसके श्रवण करने से मनुष्य अमृत हो जाता है। यह एक ऐसी औषधि है जिससे जन्म-मरण का रोग मिट जाता है। भागवत कथा को पांचवां वेद कहा गया है, जिसे पढ़ सकते हैं और सुन सकते हैं। कृष्ण हिन्दू धर्म में विष्णु के अवतार हैं। सनातन धर्म के अनुसार भगवान विष्णु सर्वपापहारी पवित्र और समस्त मनुष्यों को भोग तथा मोक्ष प्रदान करने वाले प्रमुख देवता हैं। जब-जब इस पृथ्वी पर असुर एवं राक्षसों के पापों का आतंक व्याप्त होता है तब-तब भगवान विष्णु किसी न किसी रूप में अवतरित होकर पृथ्वी के भार को कम करते हैं।

वैसे तो भगवान विष्णु ने अभी तक तेईस अवतारों को धारण किया। इन अवतारों में उनके सबसे महत्वपूर्ण अवतार श्रीराम और श्रीकृष्ण के ही माने जाते हैं। श्री कृष्ण का जन्म क्षत्रिय कुल में राजा यदु कुल के वंश में हुआ था। पांचवे दिन कथावाचक पंडित अग्निहोत्री बंधु जी ने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं और कंस वध का भजनों सहित विस्तार से वर्णन किया.उन्होंने कहा कि मनुष्य जन्म लेकर भी जो व्यक्ति पाप के अधीन होकर इस भागवत रुपी पुण्यदायिनी कथा को श्रवण नहीं करते तो उनका जीवन ही बेकार है और जिन लोगों ने इस कथा को सुनकर अपने जीवन में इसकी शिक्षाएं आत्मसात कर ली हैं तो मानों उन्होंने अपने पिता, माता और पत्नी तीनों के ही कुल का उद्धार कर लिया है.

उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण ने गौवर्धन की पूजा करके इद्र का मान मर्दन किया. भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने का साधन गौ सेवा है. श्रीकृष्ण ने गो को अपना अराध्य मानते हुए पूजा एवं सेवा की. याद रखो, गो सेवक कभी निर्धन नहीं होता. कथा वाचक अग्निहोत्री बंधु ने कृष्ण के जीवन गाथा का विस्तार पूर्वक विवरण कर संगतों को कृष्ण के जीवन लीला के बारे में बताया गया । श्रीमद्भागवत कथा साक्षात भगवान श्रीकृष्ण का दर्शन है। यह कथा बड़े भाग्य से सुनने को मिलती है।

इसलिए जब भी समय मिले कथा में सुनाए गए प्रसंगों को सुनकर अपने जीवन में आत्मसात करें, इससे मन को शांति भी मिलेगी और कल्याण होगा। कलयुग में केवल कृष्ण का नाम ही आधार है जो भवसागर से पार लगाते हैं। परमात्मा को केवल भक्ति और श्रद्धा से पाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि परिवर्तन इस संसार का नियम है यह संसार परिवर्तनशील है, जिस प्रकार एक वृक्ष से पुराने पत्ते गिरने पर नए पत्तों का जन्म होता है, इसी प्रकार मनुष्य अपना पुराना शरीर त्यागकर नया शरीर धारण करता है।


भागवत कथा में भगवाताचर्य ने लोगों को उपदेश देते हुए कहा मानव के कष्ट हरण करने के लिए भगवान ने अनेक लीलाएं कीं, काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार ही शरीर के शत्रु हैं. भक्ति की शक्ति अथवा सत्संग के प्रभाव से इन पर काबू पाया जा सकता है. सत्संग रूपी कथा अमृत जीवन से परिवर्तन आता है. भागवत कथा जीने की कला सिखाता है. धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की कला सत्संग के प्रभाव से मिलते हैं.

यदि व्यक्ति धर्म का आचरण करता है, तो धर्म द्वारा अर्जित अर्थ से धन से अपनी कामनाओं की पूर्ति करता है, तो उसकी सहज मुक्ति होती है, लेकिन अधर्म से कमाए धन से जीव तामसिक वृद्धि होती है. काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार ये तीनों नरक गामी बनाता है. कथा के पश्चात् छप्पन भोग लगाया गया एवं लोगों ने संगीतमयी कथा पर जमकर नाचे एवं भगवाताचार्य ने लोगों से अनुरोध किया ज्ञान यज्ञ के कुछ दिन ही शेष हैं इस लिये ज्यादा से ज्यादा संख्या में लोग पधार कर ज्ञानयज्ञ का लाभ लें और जीवन को सफल बनाए ।


“हरी नाम से ही जीव का कल्याण हो जाता है”
कथा व्यास अग्निहोत्री बंधु ने बताया कि भागवत कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बता देती है। कलयुग की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि कलयुग में मानस पुण्य तो सिद्ध होते हैं। परंतु मानस पाप नहीं होते। कलयुग में हरी नाम से ही जीव का कल्याण हो जाता है। कलयुग में ईश्वर का नाम ही काफी है सच्चे हृदय से हरि नाम के सुमिरन मात्र से कल्याण संभव है।इसके लिए कठिन तपस्या और यज्ञ आदि करने की आवश्यकता नहीं है।

जबकि सतयुग, द्वापर और त्रेता युग में ऐसा नहीं था। संगीतमय कथा वाचन के दौरान पाण्डाल में उपस्थित सैंकडों की संख्या में श्रद्धालु भाव विभोर हो कर नृत्य करने के साथ् झूमने लगे। इस मौके पर पूर्व भोपाल दुग्ध संघ संचालक महेंद्र कुमार पटेल ने बताया कि इस दिव्य भागवत कथा का आयोजन 20 मई से 26 मई तक दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक किया जा रहा है।जिसमें 26 मई को पूर्ण आहोति के साथ सुबह 11 बजे विशाल भंडारे का आयोजन भी रखा गया हैं । इस अवसर पर महेश वर्मा लाइनमेन, कैलाश नारायण वर्मा, चन्दर मैकेनिक , देवेन्द्र विश्वकर्मा,संतोष एलआईसी , जीवन पटेल ,महेंद्र पटेल,एडवोकेट सुमित पटेल सहित आस पास के गाँव के तमाम श्रद्धालु मौजूद रहे।

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